
‘‘आज का आतंक’’ का मतलब एक समाचार - पत्र के रूप मे है -‘‘डंके की चोट पर ’’ सच का वर्णन करना । यहां डाराने के लिए नही है । ‘‘ आज का आतंक’ यह बहुत कुछ कर गुजरने के संकल्प के लिए है । वह भी वर्तमान में कल क्या होगा कि भविष्यवाणी नही करते वरन् आज का अध्ययन -विशलेषण करके कल की कल्पना को मूर्त करने के लिए है यह है - दैनिक हिन्दी समाचर-पत्र ‘आज का आतंक’ का उद्ेश्य अर्थ, एवं सामर्थ इसी उदृदेश्य की पूर्ति के लिए पूरे बस्ती मण्डल मे इसकी गति को तेज करने के लिए यह समागम, अपने दोस्तो का समागम, अपने कर्मवीरो का समागम, अपने -अपने क्षेत्र के श्रेष्ठ एवं प्रखर जनों का समागम । आप सभी के प्रति शुभकामनायें सुद्धी पाठको के लिए शुभकामनाये एवं कलम के सिपाहियों के लिए शुभकामनायें। आपकें कर्तलध्वनि की जरूरत नही है, आपके खून की जरूरत नही है वरन् आपके श्रम के स्वेद से चुहचुहातें चेहरे पर,माथे पर चुहुचुहातें स्वेद को पोछते हुए आप जन की समस्याओं के प्रति जागरूक एवं सर्तक वातावरण सृजन करने एवं लगातार सभी को,कार्य करने वाले के , गैर सरकारी सरकारी जनों जनप्रतिनिधयों गांव शहर संसद तक लोगो को सचेष्ट रहकर जमीनी हकिकत को जानने के लिए सर्तक रहने का प्रयास करना है ।
हमें , आपकों असमां में सुरख करने की जरूरत नही है वरन् धरती की उर्वरा को शक्ति की उर्वरा का बचाते हुए इसे जीने लायक रखने की जरूरत के साथ इस पर जीवन यापन करने वाले सभी जनों को ससम्मान जीवन जीने के लिए सुविधा सम्पन्न कराने, अवसर प्रदान कराने की दिशा में कार्य करने की जरूरत है ।
आज जब समाचार -पत्र और जो कुछ भी करते हो उस पर बात कहना षब्दो के साथ न इन्साफी इस लिए इनके समर्थन एवं परिवर्तन की शक्ति पर अपनी दृष्टि रखने के लिए ‘‘ आज का आतंक’ संकल्पित है आप हमारा साथ दीजिए । हमें आपके साथ की जरूरत है आपको भी ऐसा यदि लगे या लगता हो तो खुले दिलोदिमांग से हाथ बढ़ाये और कदम से कदम मिलाइयें ।
आइयें, ‘‘ आज का आतंक’’ के साथ बढ़कर समाचारपत्रों मे सुचिता,गरिमा के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय एवं जतनतांत्रिक मेल्यो तथा सरोकारों को साथ लेकर उनके बन्द दरवाजो को भी खोलने का प्रयत्न करे जो अब तक नही खुले है या बन्द ही है । अखबार का मतलब कुछ भी हो पर सदैव बेहतर करने का ही मतलब मुख्य होत है । न की अपनी समस्याये है - प्रकाशक के रूप में,मुद्रक के रूप में, वितरक के रूप में , सम्पादक एवं सम्वाद केन्द्र विन्दू के रूप में ं माध्यम कोई भी हो ऐसा तो होता ही है - होना ही है , हां बाजरीकरण के दुनियां में सोना होनंे से ज्यादा उसका चमकना होता है । गांधी जी के देश में समाचार पत्रों को समस्यामुलक होने के साथ जागरूकता एवं वैचारिकी का ध्वजवाहक होना चाहिए । ‘‘ आज का आतंक ’’ इस दिशा में सबका साथ चाहता है साथ मिले तो बेहतर वरन् अकेले चलने को सुख दुख को सह लेने के लिए कठोर दिल से आगे बढ़ने को संकल्पित है । ब्यक्ति की गरिमा समाजहीत, संविधानहीत एवं अभिब्यक्त के अधिकार के लिए तत्यपर्य है और रहेगा ।
आप हम सभी यदि पूरा करें या करते रहे तो यह समाचार जगत की एक बेहतर उपलब्ध होगी आज अखबार नवीसी सिखने सिखाने की जरूरत नही है वरन् तथ्य को समझते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है अन्य बाते बाद
में ---।
कलम बाज जिन्दाबाद , पत्रकारिता जिन्दाबाद, आज का आतंक जिन्दाबाद ।
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