नागरिकता संशोधन बिल के संसद से पास होने के बाद अब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसे मंजूरी दे दी है। राष्ट्रपति की मुहर के साथ ही नया नागरिकता कानून बन गया है। दूसरी ओर इस एक्ट का पूर्वोत्तर के राज्यों, खासकर असम, त्रिपुरा और मेघालय में जमकर विरोध हो रहा है। इसी बीच करीब 25 साल से बांग्लादेश से निर्वासन झेल रहीं जानी-मानी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने नागरिकता संशोधन कानून पर प्रतिक्रिया दी
भारत में रहने वाली बांग्लादेशी-स्वीडिश लेखिका तस्लीमा नसरीन को उनके उपन्यास 'लज्जा' की वजह से कट्टरपंथी मुस्लिम समूहों की धमकियों के कारण 1990 के दशक में उनके गृह देश बांग्लादेश से निर्वासन के लिए मजबूर किया गया था। तस्लीमा नसरीन ने कहा, 'हम जैसे लोगों को भी नागरिकता मिलनी चाहिए। मुझे अपने घर की याद आ रही। मैं बंगाल भी नहीं जा सकती।' उन्होंने ये भी कहा कि अगर मुझे मौका मिला तो मैं वो किताबें फिर लिखूंगीं।
इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में तस्लीमा नसरीन ने नए नागरिकता कानून को लेकर खुल कर अपने पक्ष रखे। उन्होंने कहा, 'ये कानून मुस्लिम विरोधी नहीं है। भारत अपनी मुस्लिम आबादी को कम नहीं कर रहा है।' 57 वर्षीय तस्लीमा ने आगे कहा, 'नया कानून सताए हुए अल्पसंख्यकों के लिए बेहद अच्छा है। यह सही है कि अल्पसंख्यकों से प्रताड़ना की जाती थी, जब हम इसकी आलोचना करते हैं तो इस्लामिक समाज हमसे घृणा करता है।'
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